धरती का आँगन इठलाता / सुमित्रानंदन पंत
धरती का आँगन इठलाता
सुमित्रानंदन पंत
धरती का आँगन इठलाता!
शस्य श्यामला भू का यौवन
अंतरिक्ष का हृदय लुभाता!
जौ गेहूँ की स्वर्णिम बाली
भू का अंचल वैभवशाली
इस अंचल से चिर अनादि से
अंतरंग मानव का नाता!
आओ नए बीज हम बोएं
विगत युगों के बंधन खोएं
भारत की आत्मा का गौरव
स्वर्ग लोग में भी न समाता!
भारत जन रे धरती की निधि,
न्यौछावर उन पर सहृदय विधि,
दाता वे, सर्वस्व दान कर
उनका अंतर नहीं अघाता!
Iska ans bhi de plzz
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