द्वन्द्वगीत / रामधारी सिंह "दिनकर"
द्वन्द्वगीत
रामधारी सिंह "दिनकर"
हम पर्वत पर की पुकार हैं,
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- वे घाटी के वासी हैं;
वन में ही वे गृही और
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- हम गृह में भी संन्यासी हैं।
वे लेते कर बन्द खिड़कियाँ
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- डर कर तेज हवाओं से;
झंझाओं में पंख खोल
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- उड़ने के हम अभ्यासी हैं।
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