आज़ादी / राम प्रसाद बिस्मिल
आज़ादी / राम प्रसाद बिस्मिल
आज़ादी / राम प्रसाद बिस्मिल
इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,
हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।
हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।
कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं।
मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं।
मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं।
असीराने-क़फ़स से काश, यह सैयाद कह देता,
रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं।
रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं।
रहा करता है अहले-ग़म को क्या-क्या इंतज़ार इसका,
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं।
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं।
यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कै़दे-उल्फ़त में,
वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं।
सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी,
वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।
वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।
यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते,
हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?
हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?
कोई बिस्मिल बनाता है, जो मक़तल में हमें ‘बिस्मिल’,
तो हम डरकर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं।
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