कौ ठगवा नगरिया लूटल हो / कबीरदास

कौ ठगवा नगरिया लूटल हो / कबीरदास

कौ ठगवा नगरिया लूटल हो।।
चंदन काठ कै वनल खटोलना, तापर दुलहिन सूतल हो।।
उठो री सखी मोरी माँग सँवारो, दुलहा मोसे रूसल हो।।
आये जमराज पलंग चढ़ि बैठे, नैनन आँसू टूटल हो।।
चारि जने मिलि खाट उठाइन, चहुँ दिसि धू-धू उठल हो।।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, जग से नाता टूटल हो।।

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