देख, दहलीज़ से काई नहीं जाने वाली / दुष्यंत कुमार

देख, दहलीज़ से काई नहीं जाने वाली / दुष्यंत कुमार



देख, दहलीज़ से काई नहीं जाने वाली
ये ख़तरनाक सच्चाई नहीं जाने वाली 

कितना अच्छा है कि साँसों की हवा लगती है
आग अब उनसे बुझाई नहीं जाने वाली 

एक तालाब-सी भर जाती है हर बारिश में
मैं समझता हूँ ये खाई नहीं जाने वाली 

चीख़ निकली तो है होंठों से मगर मद्धम है
बंद कमरों को सुनाई नहीं जाने वाली 

तू परेशान है, तू परेशान न हो
इन ख़ुदाओं की ख़ुदाई नहीं जाने वाली 

आज सड़कों पे चले आओ तो दिल बहलेगा
चन्द ग़ज़लों से तन्हाई नहीं जाने वाली

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